डॉ. नरेश कुमार चौबे
दिनांक 07 जून 2018 को नागपुर के रेशम बाग में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के संघ शिक्षा वर्ग का समापन दिवस इतिहास के पन्नों में अंकित हो गया। कांग्रेस के वयोवृद्ध एवं देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने न सिर्फ आर एस एस का आमंत्रण स्वीकार किया अपितु नागपुर में संघ के तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग कार्यक्रम के समापन दिवस पर कार्यक्रम में उपस्थित होकर देश को एकता का सन्देश देने का कार्य किया। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ का निमंत्रण प्रणव दा द्वारा स्वीकार करने पर कांग्रेस पार्टी ही नहीं पूरा विपक्ष असमंजस में था। एक बार तो ऐसा भी लग रहा था कि कहीं ऐन वक्त पर प्रणव दा मुकर ना जाएं लेकिन ऐसा नहीं हुआ। प्रणव दा कार्यक्रम में उपस्थित भी हुए और अपना सन्देश देकर विचारों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया को बलवती किया। कांग्रेस के नेता चिंतित थे कि प्रणव दा आर एस एस के मंच पर क्यों जा रहे हैं। वहां क्या सन्देश देंगे। या उनके कार्यक्रम में जाने से कांग्रेस पार्टी पर कोई विपरीत असर तो नहीं पड़ेगा।
ऐसा नहीं है कि संघ के कार्यक्रम में पहले कभी कांग्रेसी नेता न गये हों। 1962 में चीनी हमले के समय आर.एस.एस के स्वंय सेवकों ने सैनिकों तथा नागरिकों की सहायता के लिए जो अभूतपूर्व भूमिका निभाई। उसकी प्रशंसा में पं. नेहरू ने संघ के स्वंयसेवकों को 26 जनवरी गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल किया था। लाल बहादुर शास्त्री के समय में 1965 में संघ के स्वंय सेवकों ने दिल्ली में यातायात व्यवस्था को सुचारू रखने में सहयोग दिया था। आर.एस.एस द्वारा देश ही नहीं विदेशों में भी विभिन्न प्रकल्प चलाये जा रहे हैं। 1925 से लेकर आज तक देश में जितनी भी प्राकृतिक आपदायें आयीं हैं। संघ सबमें सहयोग के लिए अग्रणी रहा है। ‘‘ प्रत्यक्षं किं प्रमाणम।’’ जो प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है उसे प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। 1925 में डॉ. हेडगेवार जी द्वारा लगाया गया पौधा आज एक विशाल वट वृक्ष बन चारों दिशाओं में अपनी सुगंध फैला रहा है। देश के इतने बड़े हिन्दू संगठन के मंच पर मैं अतिथि के रूप में आमंत्रित हूँ। मुझे जो सम्मान संघ द्वारा दिया जा रहा है, उसकी गरिमा भी मुझे रखनी चाहिए।’8
मोहन भागवत द्वारा प्रणव दा को जब कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया गया होगा तो निश्चित रूप से प्रणव दा के मन में इस तरह के विचार आये होंगे। पूव्र संघ प्रचारक एवं भाजपा के राज्य सभा सदस्य तरूण विजय ने इस सन्दभ्र में लिखा है कि ‘‘प्रणव मुखर्जी ने वैचारिक छुआछूत’’ का नफरत भरा ढांचा गिरा दिया।’’ उनहोंने 08 जून 2018 के अपने लेख में संघ के गुणगान करते हुए कई उदाहरण दिये हैं। वहीं संघ के सह सरकार्यवाह लिखते हैं कि ‘‘वैचारिक आदान-प्रदान का बेजा विरोध।’’ डॉ. मनमोहन वैध लिखते हैं कि प्रणव दा के संघ के आमंत्रण को स्वीकार करने से राजनीतिक और वैचारिक जगत में जो बहस छिड़ी उससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हिमायती लोगों का असली चेहरा सामने आ गया। उन्होंने अपने लेख में लिखा कि प्रणव मुखर्जी एक अनुभवी और परिपक्व राज नेता हैं। संघ ने उनके व्यापक अनुभव और परिपक्वता को ध्यान में रखकर ही उन्हें स्वंय सेवकों के सममुख अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किया है। वहां वह भी संघ के विचार सुनेंगे। इससे उन्हें भी संघ को समझने का सीधा मौका मिलेगा। विचारों का ऐसा आदान-प्रदान भारत की पुरानी परंपरा है, फिर भी उनके नागपुर जाने का विरोध हो रहा है। वास्तव में कांग्रेस पार्टी को जिस बात पर गर्व होना चाहिए था वो उसका विरोध कर रही थी। प्रणव दा की अपनी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी भी प्रणव दा के इस निर्णय का विरोध करते ही दीखी। वीरेन्द्र कपूर अपने लेख में लिखते हैं कि नागपुर जाकर प्रणव दा ने राहुल गांधी पर शायद उपकार ही किया है। इस दिग्गज राजनीतिज्ञ के विरूद्ध आनन्द शर्मा और अन्य छुटभैये नेताओं ने तो ट्वीट पर व्यंग कसा, लेकिन जैसे ही उन्हें यह आशंका सताने लगी कि कहीं वर आर.एस.एस को नेक चलनी का प्रमाण पत्र न दे दें। उन्होंने तुरंत अपना थूका हुआ चाट लिया। इसके पीछे यह डर था कि उनका ‘महान नेता’ जिस प्रकार मोदी को पराजित करने के लिए हर किसी के साथ गलबहियां लेते हुए एक व्यापक मोर्चा गठित कर रहा है। कहीं प्रणव दा ही संयोगवश उसके सर्वमान्य नेता के रूप में न उभर आयें। यदि इस मोर्चे को सव्रमान्य नेता नहीं मिलता तो इसके विखंडन के खतरे को टालने के लिए मुखर्जी रिक्तता को भर सकते हैं ओर उनके पास राजग की ओर प्रस्थान करने का कोई मौका नहीं होगा।
आर.एस.एस ने प्रणव दा को कार्यक्रम में आमंत्रित कर तमाम राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ तमाम तथाकथित बुद्धिजीवियों के दिमागों की चूलें हिला दीं। बैठे-बिठाये बहस का एक मुद्दा मिल गया। प्रणव दा जो अपना राष्ट्रपति का काय्रकाल समाप्त कर गुमनामी में खोने जा रहे थे उन्हें तो शुक्रगुजार होना चाहिए आर.एस.एस प्रमुख का, जिन्होंने उन्हें थोड़े समय के लिए एक नया जीवन दे दिया। प्रणव दा को एक ऐसा मंच दिया गया, जहां उनके जाने मात्र से देश के तथाकथित सेक्युलर चिंतित हो उठे कि एक दिग्गज कांग्रेसी कैसे फासिस्टवादी संगठन के आमंत्रण पर न केवल गया बल्कि सेंकड़ों स्वंयसेवकों का मार्गदर्शन भी किया। प्रश्न ये नहीं है कि प्रणव दा ने आर.एस.एस के मंच पर क्या बोला ? यहां प्रणव दा का कार्यक्रम में उपस्थित होकर संघ की कार्य पद्धति को करीब से देखना अपने आप में एक अलौकिक अनुभूति रही होगी। वैसे भी दादा एक निष्पक्ष छवि के राजनीतिज्ञ रहे हैं। कांग्रेस संगठन और सरकार में विभिन्न पदों पर रहते हुए भी अपने आपको एक अलग व्यक्तित्व का व्यक्ति होने की छाप। राष्ट्रपति पद पर रहते हुए भी पांच वर्ष का निर्विवाद कार्यकाल और तमाम विरोधों के बाद भी संघ के कार्यक्रम में जाना ये तो प्रणव दा जैसा महान व्यक्ति ही कर सकता था। डॉ. मनमोहन वैद्य का कथन कि विचारों के आदान-प्रदान से ही समाज को एक नयी दिशा मिलती है। हम एक दूसरे को पहचानते हैं। प्रणव दा की उपस्थिति भी किसी विचार मंथन से कम नहीं थी। थोड़े समय चर्चाएं अवश्य रहेंगी फिर ये भविष्य के गर्भ में इतिहास की कुछ पंक्तियां बन जायेंगी।