नगर केंद्र से बहुत दूर दी गई है मस्जिद के लिए जगह: मुस्लिम पक्षकार


अयोध्या। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले के मुस्लिम पक्षकारों ने तोड़ी जा चुकी बाबरी मस्जिद के बदले मस्जिद बनाने के लिए दी गई जमीन की लोकेशन को लेकर नाखुशी जताई है। उनका कहना है कि जमीन नगर केंद्र से बहुत दूर हैं। उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने बुधवार को पत्रकारों को बताया था कि राज्य सरकार ने लखनऊ राजमार्ग पर अयोध्या में सोहावाल तहसील के धन्नीपुर गांव में जमीन का आवंटन पत्र सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दिया है। भूमि का यह टुकड़ा जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर है।


मामले के पक्षकार मोहम्मद उमर ने बृहस्पतिवार को बातचीत करते हुए कहा कि जमीन का स्थान प्रमुख जगह नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया कि अयोध्या में किसी भी प्रमुख स्थान पर जमीन आवंटित की जानी चाहिए, लेकिन आवंटित भूमि गांव में है और सड़क से 25 किलोमीटर दूर है, इसलिए यह प्रमुख स्थान नहीं है।” मुकदमे के दूसरे पक्षकार हसबुल्लाह बादशाह खान ने कहा, “ इस्माइल फारूकी के मामले में 1994 में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट उल्लेख किया था कि मस्जिद और मंदिर 67 एकड़ की सीमा के अंदर होगी। 2019 के उच्चतम न्यायालय के फैसले के मुताबिक, मस्जिद के लिए जमीन अयोध्या में एक अहम स्थान पर दी जाएगी। रौहानी थाना क्षेत्र और सोहावाल तहसील में पहचानी गई जमीन तो अयोध्या तक में नहीं है।”

 

 

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यकारी सदस्य और वकील जफरयाब जिलानी ने कहा किशहर का नाम बदलने और उसकी नगरपालिका की सीमा का विस्तार करने का मतलब यह नहीं है कि जिस जमीन की पेशकश की गई है, वह अयोध्या में ही है। उन्होंने कहा, “ उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले साल दिवाली के दौरान फैज़ाबाद जिले का नाम बदल कर अयोध्या कर दिया था। मुकदमे से संबंधित सभी दस्तावेज़ों में अयोध्या एक छोटा शहर है, फैज़ाबाद का शहर है। अब सरकार द्वारा बनाए गए नए जिले में इस अयोध्या की बराबरी नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी गई है।ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्डसमेत मुस्लिम संगठनों ने बाबरी मस्जिद के बदले में दूसरी जगह जमीन स्वीकार करने की निंदा की है। गौरतलब है कि एक सदी से भी पुराने बाबरी मस्जिद-राम जन्म भूमि मामले का उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल नौ नवंबर को निपटारा कर दिया था और विवादित भूमि राम मंदिर के लिए रामलला विराजमान को दे दी थी, जबकि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को कहीं और पांच एकड़ जमीन देने का निर्देश दिया था।

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